Thursday, December 12, 2013

vastu aevam panch tatva ....

समग्र प्रकृति पञ्च तत्व पर निर्भर है (फाइव एलिमेंट )अग्नि ,भूमि,वायु,जल,आकाश
      अग्नि तत्व जो वास्तु में अग्नि कोण में अधिपत्य है , पूर्व दिशा के सब से अधिक सूर्य कि किरणे अग्निकोण में आती है,इशी लिए अग्निकोण में रसोईघर रखने कि सलाह वास्तुशास्त्री देते है। जिस कारण अग्निकोण में पकाई गयी रसोई कुटुंब को स्वस्थ बनती है। दूसरी बात यह शुक्र  का अधिपत्य पर है मतलब जिस घर में अग्निकोण में रसोईघर हो उस घर कि आर्ट स्त्री सुखी होती है ,उस घर में खाना पीना ,गुमना वस्त्र -सोन्दर्य प्रसाधन अधिक देखेने को मिलते है। अगर रसोई घर नहीं है तो अग्निकोण को बलवान करने के लिए वह लाल बल्ब या इलेक्ट्रिक डेकोरेटिव आइटम रखवाते है। तभी तो इस कोण में पानी होना अशुभ फल देता है। 
पानी टैंक कुवा स्विमिंग पुल इत्यादि व्यर्ज़ है। 
       भूमि तत्त्व  जो  वास्तु में नैऋत्य कोण से देखते है। तभी तो इस कोण को हमेशा भारी रखने कि सलाह देते है। भूमि तत्त्व में गंध का विशेष गुण होता है। फुंगसुई में tai chai  देखि जाती है। पारस्परिक सम्बन्ध का सूचक रहता है मतलब जिस घर में नैऋत्य कोण अच्छा नहीं है वहा लग्नजीवन -संतान के सम्बंधित प्रश्र्न  रहते है। जिस कारण वास्तुशास्त्री नैऋत्य कोण को ऊँचा एवं भारी बनाते है। 
बागवा के अनुसार घर में प्लांट रखने कि सलाह देते है। 
       वायु तत्व  जिस के शब्द -स्पर्श गुण है।  सपरश से संवेदना होती है -चेतना होती है। वास्तु में  उतर -वायव्य कोण में वायु तत्व अधिपत्य रखते है। तभी तो इस कोण में अधिक बारी या वेंटिलेशन रखने चाहिए। बागवा के अनुसार विंडब्ल् या छोटी घंटी लगायी जाती है। इस कोण में रखे हुए इलेक्ट्रिक साधन अधिक मात्र में बिगड़ जाते है। अघर वायु तत्व डिस्टरब है तो मानसिक त्रास ,परदेश जाना ,सवेंदनशीलता में परिवर्तन होते रहते है। अस्थमा ,हाई ब्लूड प्रेशर ,हार्ट प्रॉब्लम कि तकलीफ रहती है। 
        जल तत्व  वास्तु में ईशान कोण में आता है। सामान्य नियम अनुसार नैऋत्य के पवन बारिश लेट है।  बारिश का पानी -पवन दक्षिण -पश्विम में ज्यादा होते है। तभी तो नैऋत्य कोण को ऊंचा और ईशान कोण को निचा रखा जाता है। इसी लिए यहाँ पानी कि  अंडरग्राउंड टैंक ,पानी का बोर,कुवा इत्यादि रखना शुभ कहा गया है। फैंग सुई में यहाँ फिश घर -फाउंटेन रखने का कहते है।  
         आकाश तत्व  वास्तु में ब्रह्म स्थान होता है। इशी लिए पुराने समय में घरे के मध्य में खुली जगह रखते थे। जो आकाश का दर्शन कराती थी। अब ये सम्भव नहीं  है तो माकन कि छत तो ऊंची रखना जरुरी है। आप देखिये जिस घर में छत ऊंची होगी वहा  प्रवेश करते ही शांति का एह्सास  होता है। विचारो में उदारता दिखाई देती है।  आकाश तत्त्व का सम्बन्ध ध्वनि से है इसी लिए पिलर आदि  के  उपाय में दो बंसी को क्रॉस में छत में लगाने के लिए कहते है। 

अगर वास्तु में पञ्च तत्व डिस्टरब हो जाये तो पुरे परिवार का जीवन अस्त व्यस्त हो जाता है।  इसी तरह हमारे शारीर में पञ्च तत्व डिस्टर्ब हो तो हमारा जीवन बिगड़ जाता है। 
इस पर अधिक से अधिक विचार करने पर हमें वास्तु के सारे उपाय मिल सकते है।


Saturday, February 2, 2013

वास्तुपुरुष परिचय

वास्तुशास्त्र में वास्तुपुरुष का सम्बन्ध निर्माणकार्य में वास्तुपुरुष कप्रत्येक अंग से सुभाशुभ  फल का विचार किया जाता है।
वास्तुपुरुष  के अंग अवं उस पर अधिपति देव का विवरण .....
वास्तुपुरुष के अंग .........अधिपति देव ......
मस्तक ...........महादेव
कण ..................पर्जन्य & दिति
गला .......................आयदेव
कन्धा .................जय & अदिति
स्तन .......................आर्यमा & पृथ्वीधर 
रुदय                            आपवत्स
बाया बाहु ....................इन्द्रादि
दाया बाहु .....................नागादि
बाया हस्त ..........सावित्री & सविता
दाया हस्त ........रूद्र & रुद्रदाक्ष
नाभि .............ब्रह्मा
इन्द्रियस्थान ...........इंद्रा & जय



 

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